किसीने अच्छा खाया अच्छा पहना या अच्छा घर बनाया इतनी सी बात् के लिये उसकी प्रशन्शा नही की जा सकती है, क्योकि इतना काम तो सभी जीवधारी पशु पंछी भी करते है, दीमक, मधुमक्खी, चीटी और बया चिडिया आदमी से किस बात् मे कम् है । आदमी की प्रशन्शा का माप दंड है -धर्म और सन्स्क्रिती का पालन । आदमी को धर्म अर्थात कर्तव्य कर्म और सन्सक्रिती अर्थात भाषा, भेश, आचार् विचार पर्व,उत्सव, सन्सकार और जीवन के शास्वत मूल्यो को कभी नही भूलना चाहिये,आदमी की परिक्षा तब होती है जब वह् गैरो के स्थान और् विपरीत परिस्थिति मे होता है ,तब भी यदि वह् अपने कर्तव्य और मर्यादा को नही छोड्ता है तभी वह् प्रशन्सा का पात्र हो सकता है ।अन्यथा वह केवल एक निरीह प्राणी बनकर रह जाता है जिसे न समाज जानता है न ईतिहास याद करता है। गीता का यह् सन्देश मानव मात्र के लिये सदैव स्मर्णीय रहना चाहिये .